जब बेब्बसी से ठिठुरता हैं रूह
तब उम्मीद की चिंगारी ही ताप्ति हैं रूह को
जब आसूं भी बहने से इंकार कर देता हैं
तब उम्मीद से सजे सपने ही दिलासा देते हैं तपती आँखों को
जब तन्हाई अपना सा लगने लगता हैं
तब उम्मीद ही अपनी खिलखिलाहट से दोस्ती कराती हैं
जब दर की जंजीरें ज़िन्दगी को आगे बढ़ने से रोकती हैं
तब उम्मीद की तेज़ाब उन जंजीरों को पिघला देती हैं
जब खोना ही ज़िन्दाही का सच बन जाता हैं
तब उम्मीद का तोहफा इस सच को झूठ बना देती हैं
जब शुन्य निगलने लगता हैं रूह को
तब उम्मीद ही सहारा बनती हैं रूह का
जब सारें रंग काला चादर ओढ़ लेते हैं
तब उम्मीद की आग उस चादर को जला रंगों से गुफ्तगुं कराती हैं
जब दिन भी रात के अंधेरों में छूप जातें हैं
तब उम्मीद की किरने ही उन रातों में सूरज उदय करवाती हैं
तब उम्मीद की चिंगारी ही ताप्ति हैं रूह को
जब आसूं भी बहने से इंकार कर देता हैं
तब उम्मीद से सजे सपने ही दिलासा देते हैं तपती आँखों को
जब तन्हाई अपना सा लगने लगता हैं
तब उम्मीद ही अपनी खिलखिलाहट से दोस्ती कराती हैं
जब दर की जंजीरें ज़िन्दगी को आगे बढ़ने से रोकती हैं
तब उम्मीद की तेज़ाब उन जंजीरों को पिघला देती हैं
जब खोना ही ज़िन्दाही का सच बन जाता हैं
तब उम्मीद का तोहफा इस सच को झूठ बना देती हैं
जब शुन्य निगलने लगता हैं रूह को
तब उम्मीद ही सहारा बनती हैं रूह का
जब सारें रंग काला चादर ओढ़ लेते हैं
तब उम्मीद की आग उस चादर को जला रंगों से गुफ्तगुं कराती हैं
जब दिन भी रात के अंधेरों में छूप जातें हैं
तब उम्मीद की किरने ही उन रातों में सूरज उदय करवाती हैं