Monday, December 31, 2012

मैं निर्भया






मैं  निर्भया

मैं उस माँ का अंश हूँ जिसके चरणों  में  यह  समाज माथा टेक्ता  है  ,
  लेकिन मुझसे यह उम्मीद  की  जाती हैं की में समाज कें चरणों की दासी बनू  !

मैं  उस माँ का अंश हूँ जिसने काली रूप धारण कर असुरों का संघार किया था,
    लेकिन मेरी ज्वाला के तेज को कोख में ही बुझा  क्यों  दिया जाता है ?

मैं उस माँ का अंश हूँ जिनको घर में लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है,
     लेकिन मेरे भाई मेरा ही सौदा क्यूँ कर बैठते हैं ?

मैं उस माँ का अंश हु जिसके तेज के सामने अग्नी भी हिम बन जाती है ,
     लेकिन मुझे  कुछ पैसों के लिए जलने की सजा क्यूँ दे दी जाती है ?

मैं  उस माँ का अंश हूँ जिसके सम्मान में यह समाज नवरात्री का उपवास करता है ,
   लेकिन मुझे दो वक़्त की रोटी के लिए अपने ही घर में भीख माँगना क्यूँ  पढ़ता  है ?

मैं उस माँ का अंश हूँ जो अपने बच्चे को दुनिया में लाने के लिए असहनीय  पीढ़ा  सहती है,
     लेकिन मेरे भाई मेरे शरीर के हर अंश को शान से रोंदते रहते हैं !


क्यूँ उस माँ का अंश होने पर भी मुझसे  सौतेला व्यवहार होता है ?

शायद इसलिए की मैं ,
          उस माँ का अंश भी हूँ जिसने अपने बेटे की  उन्नति के लिए मेरे हक़ को राख कर दिया !

शायद इसलिए की मैं ,
          उस माँ का अंश भी हूँ जिसने अपने बेटे की आज़ादी के लिए मेरे पैरों में जंजीरें डाल  दी !

शायद इसलिए की मैं  ,
          उस माँ का अंश भी हूँ ज्सिने अपने बेटे के शौक पुरे करने के लिए मुझे सरे आम बेच दिया !

शायद इसलिए की मैं  ,
          उस माँ का अंश भी हूँ जिसने अपने बेटे को धन और मुझे बोझ समझा !

शायद इसलिए की मैं ,
          उस माँ का अंश भी हूँ जिसने अपनी  बहू  को सहेली न बना अपनी दासी बना नरक पे ढकेल  दिया !

शायद इसलिए मेरे ही भाई मेरे को इंसान नहीं एक वस्तू समझते हैं!
शायद इसलिए मेरे ही भाई मेरे शारीर को अपनी संपत्ति समझ बेठें हैं !
शायद इसलिए मेरे ही भाई मेरा सौदा करने में गर्वित महसूस करते हैं !

लेकिन अब  मैं  बदनसीब अंश न बनूँगी , मेरी प्रतिभा का सम्मान इस समाज को करना ही होगा ;
क्यूंकि अब  मैं  चुप न बैठूंगी   आखिर  निर्भया हूँ मैं  !

लेकिन अब में अपने भाइयों के लिए एक त्याग की वस्तु न बनूँगी, मेरी  शक्ति से उन्हें, अब  में सही और गलत की पहचान कराउंगी ;
क्यूंकि अब  मैं  चुप न बैठूंगी   आखिर  निर्भया हूँ मैं  !

लेकिन अब  मैं  घर की लक्ष्मी बन चार दिवारी में कैद  न रहूंगी , काली रूप धारण कर इस समाज के असुरों का वध करुँगी ;
क्यूंकि अब  मैं  चुप न बैठूंगी   आखिर  निर्भया हूँ मैं  !

क्यूंकि अब  मैं  चुप न बैठूंगी   आखिर  निर्भया हूँ मैं  !
क्यूंकि अब  मैं  चुप न बैठूंगी   आखिर  निर्भया हूँ मैं  !

Tuesday, September 18, 2012

दुनिया का दस्तूर,







जिन आँखों में सपनो कें अंगारों की चमक होती थी,
उनमें आज कोहरें का धुंधलापन क्यों हैं ?

जो बाजूं कईयों का सहारा हुआ करते थे,
वोह आज खुद सहारा क्यों तलाशते हैं ?

जिस आवाज़ के दाहाढ़ से चट्टानें भी काप उठती थीं,
आज उसी आवाज़ की पुकार पे कोई क्यों नहीं आता...

जो आसूं पहले आँखों के कैदी हुआ करते थे,
वोह आज कैद से भागें क्यों हैं?

जिन हाथों ने हमें चिल्लर का खज़ाना दिया था,
वही हाथ आज बेबस क्यों हैं ?

शायद यही हैं दुनिया का दस्तूर,
शायद इसी का नाम हैं जीवन चक्र
जो जैसे शुरू हुआ वोह वैसे ही मिट जाता हैं !

अगर इसे ही कहते हैं दुनिया का दस्तूर,
तों क्यूँ हम अपने आँखों में सपनो के अंगारों को बुझा देते हैं ?
तों क्यों हम अपने बाजूओं को कमज़ोर समझते हैं?

अगर इसे ही कहते हैं दुनिया का दस्तूर ,
तो क्यों हम अपने ही आवाज के गूंज से डरते हैं ?
तो क्यों हम अपने आसुओं को अपनी ही कमजोरी बन्ने देते हैं ?

अगर इसे ही कहते हैं दुनिया का दस्तूर ,
तो क्यूँ चिल्लर के खजाने को हम बेच देते हैं?

शायद यही हैं दुनिया का दस्तूर ,
की हमें खुद की कीमत हमारे मिटने के बाद ही पता चलती हैं
शहद यही हैं दुनिया का दस्तूर..

अर्नव चत्तेर्जी

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Duniyai ka dustoor


Jin aankhon mein sapno ke angaron ki chamak hoti thi,
unmein aaj kohre ka dhondhlapan kyu hain?

Jo Baazoon kaiyon ka sahara hua karte the,
woh aaj khud sahara kyu taalastein hain?

Jis awaaz ke daahaar se chattane bhi kaap uthti thi,
aaj usi awaaz ki pukar pe koi kyu nahi aata?

Jo aasun pehle aankhon ke kaidi hua karte the,
woh aaj kaid se bhagen kyu hain?

Jin hathon ne humein chillar ka khazana dia tha,
wahi hath aaj bebas kyu hain?

Shayad yehi hain duniya ka dastur,
shayad isi ka naam hain jeevan chakra,
jo jaise shuru hau woh waise hi mit jata hain..

Agar ise hi kehte hain duniya ka dastur,
taun kyun hum apne aankhon mein sapno ke aangaron ko bujha dete hain?
taun kyu hum apne baazoyon ko kamzor samjhte hain ?

Agar ise hi kehte hain duniya ka dastur,
taun kyu hum apne hi awaaj ke gunj se darte hain?
taun kyu hum apne aasuon ko apni hi kamzori banne dete hain?

Agar ise hi kehte hain duniya ka dastur,
taun kyun chillar ke khazane ko hum bech dete hain?


Shayad yehi hain duniya ka dastur ,
ki humein khud ki keemat humare mitne ke baad hi pata chaltee hain!
Shahad yehi hain duniya ka dastur!

Sunday, May 13, 2012

उम्मीद

जब बेब्बसी से ठिठुरता हैं रूह
 तब उम्मीद की चिंगारी ही ताप्ति हैं रूह को

जब आसूं भी बहने से इंकार कर देता हैं
  तब उम्मीद से सजे सपने ही दिलासा देते हैं तपती आँखों को

जब तन्हाई अपना सा लगने लगता हैं
 तब उम्मीद ही अपनी खिलखिलाहट से दोस्ती कराती हैं

जब दर की जंजीरें ज़िन्दगी को आगे बढ़ने से रोकती हैं
 तब उम्मीद की तेज़ाब उन जंजीरों को पिघला देती हैं

जब खोना ही ज़िन्दाही का सच बन जाता हैं
 तब उम्मीद का तोहफा इस सच को झूठ बना देती हैं

जब शुन्य निगलने लगता हैं रूह को
 तब उम्मीद ही सहारा बनती हैं रूह का

जब सारें रंग काला चादर ओढ़ लेते हैं
 तब उम्मीद की आग उस चादर को जला रंगों से गुफ्तगुं कराती हैं

जब दिन भी रात के अंधेरों में छूप जातें हैं
 तब उम्मीद की किरने ही उन रातों में सूरज उदय करवाती हैं